Akhil Bhartiya Dosar Vaishya Mahasabha is a non-profit organization devoted to the holistic development and empowerment of the Dosar Vaishya community across India. Rooted in the values of unity, equality, and service, our organization works tirelessly to address
आज दोसर वैश्य समाज के हर व्यक्ति के मन में एक प्रश्न उठता है कि दोसर वैश्य समाज में जन्म लिया है तो इसकी उत्पत्ति कहाँ और कैसे हुई। इसकी जानकारी ज्ञात हो सके इसके लिए मैंने समाज और राजनीती में कार्य करते हुए और विभिन्न प्राचीन पुस्तको से जो जानकारी प्राप्त हुई वह मैं आप सबकी जानकारी के लिए लिख रहा हूँ । गोत्र – महाभारत व जातक आदि प्राचीन ग्रंथो में व्यक्ति का परिचय पूछते समय उसका नाम तथा गोत्र दोनों विषय में पुछा जाता था । गोत्रो की परंपरा प्राचीन ऋषियों से चली आ रही है , मान्यता है कि मूल पुरुष ब्रह्मा के चार पुत्र – भ्रगु , अंगिरा , मरीचि और अत्रि हुए । ये चार ऋषि गोत्रकर्ता थे । ऋषि मरीचि के पुत्र कश्यप थे , हमारा दोसर वैश्य समाज कश्यप ऋषि का गोत्र है । उत्पत्ति का स्थल -दोसर वैश्य, दूसर वैश्य का कालांतर में परिवर्तित रूप है । डा . मोतीलाल भार्गव द्वारा लिखी पुस्तक "हेमू और उसका युग" से पता चलता है कि दूसर वैश्य हरियाणा में दूसी गाँव क़े मूल निवासी थे ।जो कि गुरगाव जनपद के उपनगर रिवाड़ी के पास स्थित है ।यह स्थान बलराम जी (बलदाऊ)की ससुराल जो वधुसर कि दूसर और बाद में दूसी कहलाया। दोसर वैश्य समाज की विजय गाथा / दिल्ली विजय – हेमू की दिल्ली विजय – भारतीय इतिहास में प्रशिद्ध हेमचन्द्र विक्रमादित्य ‘हेमू’ दोसर वैश्य जाति के थे । हेमू के पिता का नाम पूरन दास और चाचा का नाम नवलदास था जो दोसर वैश्य समाज के प्रशिद्ध संत थे । हेमू ने 6 अक्टूबर सन 1556 को दिल्ली विजय प्राप्त की । 300 वर्षो बाद किसी हिन्दू शासक ने दिल्ली की सत्ता प्राप्त की थी । दॊसर वैश्य का वर्गीकरण -पंडित कामता प्रसाद द्वारा लिखी पुस्तक "जाति भास्कर" सम्वत 1960 विक्रमी के लगभग से पता चलता है कि इसमें लगभग 400 वैश्य उप-जातियों का विवरण है ।इस सूची में दोसर वैश्य के स्थान पर दूसर वैश्य का विविरण मिलता है जो कि दिल्ली और मिर्जापुर के बीच गंगा किनारे निवास करते है । दोसर वैश्य समाज की धार्मिक मान्यताएं – दोसर वैश्य समाज गाय को बहुत ही सुभ एवं पवित्र मानते थे । दोसर वैश्य समाज वैष्णव् मत को मानने वाले है । उत्तर भारत में केवल दोसर वैश्य समाज में विवाह में वधू को निगोड़ा पहनाया जाता था । आज भी दोसर वैश्य समाज के अतिरिक्त आज किसी समाज में निगोड़ा नहीं पहनाया जाता है | मोती लाल जी का शॊध – ब्रिटिश शासनकाल में सन 1880 में मोतीलाल भार्गव द्वारा दिए गए शॊध पुत्र "हेमू और उसका युग" में वर्णन है – दूसी जो हेमू का जन्म स्थान था वहां वैश्य को दूसी वैश्य जो वर्तमान में दॊसर वैश्य कहा गया है।
The Dosar Vaishya community is a vibrant and diverse group that has contributed significantly to India’s cultural, social, and economic landscape. With a rich heritage and deep-rooted values, the community is known for its entrepreneurial spirit, commitment to education, and strong family bonds.
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